LifeStyle Desk (NewsGurukul.Com) : सारे दिन तरह-तरह के कामों के चलते अक्सर हम कुछ चीजों को भूल जाते हैं। अगर हम कभी-कभार कुछ भूल रहे हैं तो यह बिलकुल सामान्य है, लेकिन अगर चीजों को भूलने की रफ्तार में लगातार तेजी आ रही है तो यह बिलकुल भी सामान्य नहीं है। अगर इससे जुड़े आंकड़ो पर गौर किया जाए तो उनसे साफ तौर पर समझा जा सकता है कि युवाओं में भूलने की समस्या कितनी तेजी से बढ़ रही है। अगर आप ज्यादा भूल रहे हैं तो यह अल्जाइमर और डिमेंशिया जैसी गंभीर दिमागी बीमारियां भी हो सकती हैं..
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बढ़ती उम्र का असर इंसान के तन और मन, दोनों पर दिखाई देता है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ने लगती है, वैसे-वैसे प्राकृतिक तौर पर याद रखने की क्षमता कम होने लगती है। भूलने की इस समस्या के कारण नई चीजें सीखने और उन्हें लंबे समय तक याद रखने में मुश्किल हो सकती है। अक्सर देखा जाता है कि लोगों में उम्र बढ़ने के साथ-साथ छोटी-छोटी चीजों को भूलने की आदत पड़ने लग जाती है, जैसे घर या गाड़ी की चाबी या चश्मा कहीं रखकर भूल जाना आदि। उम्र बढ़ने के साथ-साथ इस तरह की चीजों का होना बिलकुल सामान्य है, लेकिन हैरत की बात तो यह है कि आजकल युवा पीढ़ी भी इस तरह की समस्याओं से जूझ रही है। पिछले दो दशकों में किए गए एक अध्य्यन से यह सामने आया है कि युवाओं में भूलने की बीमारी बहुत तेजी से बढ़ रही है।
जानकार बताते हैं कि व्यस्त जीवनशैली और जिंदगी में तनाव की अधिकता, हमारे याद रखने की क्षमता को प्रभावित करते हैं। इस तरह की समस्याओं में सबसे ज्यादा दिक्कत तब होती है, जब हम अपने दैनिक जीवन में चीजों को इतना भूलने लग जाते हैं, जिससे कि हमारा रोजमर्गा का काम प्रभावित होने लगता है। एक शोध के मुताबिक याद रखने की क्षमता नकारात्मक रूप से अवसाद, गलत दवाओं के सेवन, नशीली चीजों के सेवन और तनाव से तेजी से प्रभावित होती है। इसके अलावा, एक्सपर्ट्स बताते हैं कि यदि आपको मेमोरी लॉस का पता शुरुआती दौर में ही पता लग जाए तो तुरंत आपको इसका इलाज शुरु करवा देना चाहिए, अन्यथा यह उम्र बढ़ने के साथ-साथ ज्यादा बढ़ सकता है। रिसर्चस् में पता चला है कि डिमेंशिया और अल्जाइमर के कारण होने वाली मेमोरी लॉस को पूरी तरह से रोका तो नहीं जा सकता, लेकिन सही इलाज की मदद से इसकी रफ्तार को धीमा जरुर किया जा सकता है।
क्या हैं याद्दाश्त कम होने के कारण …
- आनुवांशिक कारण : अगर आपके परिवार में किसी को इस तरह की बीमारी है तो पूरे-पूरे चांस हैं कि आपको भी भूलने की बीमारी हो सकती है। इसके अलावा, थायरॉइड व विटामिन बी-12 की कमी होने से भी याद्दाश्त पर गहरा असर पड़ता है।
- चोट : अगर आपको जीवन में कभी सिर पर गहरी चोट लगी हो तो यह भी मैमोरी लॉस का एक कारण हो सकता है, क्योंकि सिर में चोट लगने से दिमाग का हिस्सा हिप्पोकैंपस क्षतिग्रस्त हो जाता है।
- किसी प्रकार का ट्रामा : लगभग हर इंसान के साथ जीवन में एक बार कोई ऐसा हादसा जरुर होता है, जो उसे भावनात्मक रूप से तोड़ देता है। इस तरह की कोई घटना होने पर भी कोई व्यक्ति याद्दाश्त में कमी जैसी समस्याओं का शिकार हो सकता है
- तनाव : अगर आप तनाव में रहते हैं तो यह निश्चित है कि इसका सीधा असर आपकी याद्दाश्त पर पड़ता है। लंबे समय तक तनाव में रहने से मेमोरी पर प्रतिकूल प्रभाव प्रभाव पड़ता है, जिससे आपकी याद्दाश्त कम होने लगती है।
युवावस्था में शरीर के भीतर कई मानसिक और भावनात्मक बदलाव होते हैं। युवावस्था के आते-आते करियर, रिलेशनशिप, परिवार आदि की चिंताओं में तालमेल स्थापित कर पाना मुश्किल काम हो जाता है। इन्हीं सब के चलते कई बार युवा सोचने-समझने की शक्ति को खोने लगते हैं। यही युवाओं में मेमोरी लॉस का एक बड़ा कारण बनता जा रहा है। इसके अलावा, डिजिटल उपकरणों के बढ़ते प्रयोग ने भी इंसान की भूलने की आदत को बढ़ाया है। सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग ने बड़ो के साथ-साथ बच्चों की ध्यान केंद्रित करने की क्षमता और एकाग्रता को प्रभावित किया है। एकाग्रता की कमी के कारण बच्चों में चिड़चिड़ापन बढ़ता है, जिससे उनकी किसी चीज को याद रखने की क्षमता प्रभावित होती है। अगर आपकी लाइफस्टाइल ऐसी है, जिससे आपकी मेमोरी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, तो आपको उसमें सुधार करना चाहिए। इससे निश्चित ही आपकी मेमोरी बूस्ट होगी।
यूनाइटेड किंगडम की नेशनल हेल्थ सर्विस ने दिमागी सेहत पर एक लंबा शोध कर यह निष्कर्ष निकाला है कि ज्यादातर मामलों में 60 साल की उम्र पूरी करने के बाद इंसान के शरीर और दिमाग के कार्य करके की क्षमता घटने लगती है तथा 65 की उम्र पार करने के बाद हर 5 साल में अल्जाइमर होने का खतरा दुगुना बढ़ जाता है। एक शोध में पाया गया है कि जो लोग रोजाना 7 घंटे से अधिक इलेक्ट्रानिक गेजेट्स का इस्तेमाल करते हैं, उनमें डिमेंशिया का खतरा अन्य लोगों की अपेक्षा ज्यादा होता है।
एक अनुमान के मुताबिक दुनियाभर में करीब साढ़े पांच करोड़ से अधिक लोग डिमेंशिया से पीड़ित हैं। इनमें से 60 फीसदी से अधिक लोग ऐसे हैं, जो निम्न या मध्यम आय वाले देशों में निवास करते हैं। विश्व स्वास्थय संघ की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि हर साल दुनियाभर में लगभग एक करोड़ से ज्यादा नए डिमेंशिया के मामले सामने आते हैं। अगर वर्ष 2020 के आंकड़ो की बात की जाए तो देश भर में डिमेंशिया के लगभग 53 लाख मामले थे जो अब बढ़कर 80 लाख से ज्यादा हो गए हैं।
याद्दाश्त का चले जाना और याद रखने में समस्या होना दोनों अलग-अलग चीजें हैं। याद्दाश्त के चले जाने में व्यक्ति अपना अगला-पिछला सब कुछ भूल जाता है और याद्दाश्त कम होने में उसे चीजों को याद रखने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। याद्दाश्त चले जाना कई बार थोड़े समय के लिए भी हो सकता है और कई बार यह बहुत लंबे समय के लिए भी हो सकता है। डिमेंशिया और अल्जाइमर के लक्षणों में मेमोरी लॉस, भ्रम और मानसिक व्यवहार में बदलाव दिखाई दे सकता है। अगर आपको अपने अंदर या अपने किसी परिचित के अंदर इस तरह के लक्षण दिखाई दे रहे हैं तो तुरंत आपको न्यूरोलॉजिस्ट से संपर्क करना चाहिए।
न्यूरोलॉजिस्ट रोगी के दैनिक कार्यव्यवहार, शारीरिक परीक्षण, जांच, मरीज की मेडिकल हिस्ट्री के आधार पर उसका उपचार शुरु करते हैं। यह साबित हो चुका है कि इलाज के द्वारा डिमेंशिया या अल्जाइमर को पूरी तरह रोका तो नहीं जा सकता, लेकिन इसके लक्षणों को कम जरूर किया जा सकता है।
इनसे मिल सकती है मदद…
अगर आप अपनी लाइफस्टाइल को दुरुस्त रखेंगे तो आप इस तरह की समस्या से खुद को बचा सकते हैं। इसके लिए आपको संतुलित आहार, नियमित व्यायाम आदि करना जरुरी है। खुद को भूलने की समस्या से बचाने के लिए आप मेंटल एक्सरसाइज भी कर सकते हैं। इसके द्वारा मष्तिष्क को सक्रिय करके डिमेंशिया या अल्जाइमर के लक्षणों को कम किया जा सकता है। दिमागी कसरत करने के लिए आप पजल, सुडोकू, शतरंज आदि गेम्स खेल सकते हैं। अगर आप अपने आसपास इस तरह की समस्याओं से किसी को जूझता हुआ पा रहे हैं तो आप उसके साथ रहकर उसे सहानुभूति दे सकते हैं। क्योंकि इस तरह की समस्याओं को ठीक करने के लिए दवाइयों से ज्यादा परिवार और मित्रों का साथ जरुरी होता है। इतना करने के बाद भी अगर आपको इस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है तो तुरंत ही आपको डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।